आज कल हमारे समाज में आरक्षण एक लाइलाज बीमारी बनी हुई है, जिसका कोई इलाज नही है। हम आज तक आरक्षण के बारिकियों को अच्छी तरह नही समझ पायें हैं। आयें एक बार आरक्षण की बरिकिओं पे धयान दें, जरा गौर से पाढ़ीयेगा इसकी संगतियाँ और विसंगतियां।
आरक्षण सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि वोट बैंक की राजनीती बन के रह गई हैं। जब 1950 में सविंधान लागु हुआ, उसी के साथ आरक्षण का गन्दा खेल शुरु हुआ, उसी दिन 15% अनुसूचित जाति को और 7.5% अनुसूचित जन जाति के लिए लागु हुआ। लेकिन आगे चलकर 1990 में मंडल कमीशन ने 27% अन्य पिछड़ा वर्ग के नाम आरक्षण कर दिया। 2005 में उच्च शिक्षण संस्थानों में, पदोन्नति, सरकारी भूमि के आवंटन में, प्रमोशन, में तथा सरकारी योजनाओं में, लागु कर दिया गया। इसी तरह धीरे –धीरे सभी राज्यों और केंद्रीय सेवाओं में इसको बढाकर 49.5% कर दी गई। सविधान के अनुसार आरक्षण को 50% तक ही सिमित रखने का व्यवधान था, लेकिन इसके बावजूद तमिलनाडु में 54% तथा राजस्थान में 68% तक कर दिया गया हैं। सविधान के धारा 340 में अन्य पिछरे वर्गों कों पहचान कर उनकी सहायता करनी थी। लेकिन, बाद में मंडल कमीशन ने पिछरी जातियों की पहचान करा आरक्षण लागु करा दिया।
सविधान के अनुसार आरक्षण व्यवस्ता को मात्र 10 वर्षों तक के लिए हि सिमित रखा गया था, जो आज तक जारी हैं। हमारे राज्यों और केंद्र सरकार मिलकर सविंधान की धजियाँ उड़ा रहें हैं। इनको इन सभी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योकि इनको तो मत से मतलब हैं।
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संविधान के अनुछेद 15A के अनुसार कोई राज्य किसी भी नागरिक के साथ केवल, धर्म, मूल, वंश, जाती, और जन्म स्थान के नाम पे भेदभाव नहीं कर सकता। लेकिन, ऐसा कहीं भीं देखने को नहीं मिलता हैं। आज सभी राज्यों में धर्म, वंश, यौंम जाती के नाम पे हर छेत्र में भेदभाव देखने को मिलता है जो एकदम गलत हैं।
अनुछेद 16A के अनुसार कहा गया है की हर राज्य सरकारी नौकरिया में समानता देगी, लेकिन अभी के समय सरकारी नौकरि पाने के लिए आपकी जाती बहुत जरुरी है। इसका एक उदहारण आप सब के सामने है- IAS(2016) का परिणाम घोषित हुआ था उसमे 195 अंक लाकर एक लड़की अव्वल रही वहीं 230 अंक लाकर अंकित कुमार फेल रहा। क्योकि अंकित सामान्य कोटि से ताल्लुक रखता है और लड़की अनुसूचित जाति।
जाति आधारित आरक्षण सविंधान का स्पष्ट उलंघन है। इन बातो की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट 1951 में मद्रास राज्य बनाम श्री मति चम्पक दोराई राजन मामले में निर्णय देते वक्त कही थी। लेकिन, फिर भी इस बात पर किसी सरकार का धयान नही गया। इसके बाद 1965 में लोकुर कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर को चिन्हित करके कुछ जातिओं को आरक्षण के दायरे से बाहर करने की सिफारिश की थी, लेकिन उससे भी कोई फायदा अभी तक नही हुआ।भारत में आरक्षण की अधभुत विशेषता है, भले ही किसी के पास बंगला, गाड़ी, विदेश में शिक्षा प्राप्त करने लायक धन हो, वो भी आरक्षण ले सकता है। एक बार आरक्षण प्राप्त कर सांसद, विधायक, या अधिकारी होने के बाद भी उसकी संताने आरक्षण प्राप्त करती है, जो नियमानुसार गलत है।
इसी सामाजिक बुराई को आरक्षण कहतें हैं, जिसे बंद करने का समय आ गया हैं।
अगर घोड़ा गधे से तेज दोड सकता है तो क्या घोड़े के पैर मे आरक्षण कि जंजीर बांध दे जिससे गधा आगे निकल जाये….
तेज चलना घोड़े कि प्रतिभा है… कमजोरी नहि……
…. तो क्यों जबरदस्ती गधे को महान बनाने मे लगे है सब….
#IndiaAgainstReservation