सरदार भगत सिंह:- एक जज्बा एक सोच।।।।

28 सितंबर हर साल आता है और चला जाता है पर एक ख़ास बात है इस दिन सारे युवा सारा देश एक साथ एक सूत्र में पिरो जाता है।।।

क्योंकि 28 सितंबर और दिनों की तरह सिर्फ केलिन्डर में आने और गुजर जाने वाला तारीख नहीं है

ये एक सोच है,,, जज्वा है,,, एक ऊर्जा है,, जो आप में है हम में है हम सब में है।।।

अमर शहीदों में जो नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता है वो नाम है शहीद “सरदार भगत सिंह” जी का।।।

इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 को एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था और इस देशभक्त परिबार का प्रभाव उनके जीवन पर भी पड़ा था।।

इनके जन्म से पूर्व ही इन्हें पिता और इनके चाचा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफत के कारण जेल में बंद थे और ठीक इनके जन्म के दिन ही इनके पिता और चाचा जेल से रिहा हुए थे।।।

इस ख़ुशी के कारण ही इनकी दादी ने इनका नाम भागो सिंह रखा जो आगे चल के भगत सिंह के नाम से प्रशिद्ध हुआ।।।

इनके परिवार पर आर्य समाज और महर्षि दयानंद का गहरा प्रभाव पड़ा था जिसके परिणामस्वरूप सरदार भगत सिंह जी बचपन से ही देशप्रेम को ले के ज्यादा सजग थे।।।

इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह जी था और इनकी माता विद्याबति कौर जी थी।।।

सरदार भगत सिंह जी मात्र 14 बर्ष की अल्पायु से ही क्रांतिकारियों के संगठनो के संपर्क में आ गए और उनके लिए काम करने लगे।।

बहुत जल्द ही घर में  इनकी शादी की बात होने लगी।।

पर ये बालक तो कुछ और ही सोच के साथ पूरे तन मन और धन से देशप्रेम में अपनी जान न्योछाबर करने को तैयार था।।।

ये  कहा इस समाज की रूढिबादि बंधनों में बंधने को तैयार था और ये भागकर कानपुर आ गए।।

जल्दी ही जलियावालाबाघ हत्याकांड में जिस निर्दयता और बर्बरता से हिन्दुस्तानियो का दामन किया गया और क्रांतिकारियों का सर कुचला गया  ये देख भगत सिंह सोचने पर विवश हो गए और परिणामस्वरूप इन्होंने नेशनल लॉ कॉलेज छोड़ कर के नौजवान भारत सभा की स्थापना की।।।

आगे चल कर ये काकोरी कांड के क्रांतिकारियों के दमन की अंग्रेजी नीति से इतने बेचैन हुए के इन्होंने चंद्रशेखर के साथ मिल कर उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए।।।

 

आगे चल कर आज़ाद से प्रभावित हो कर इन्होंने आज़ाद के साथ मिल कर के उनकी पार्टी को नया नाम हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन दिया।।।

17 दिसम्बर 1928 को इन्होंने लौहार में सहायक पुलिस अधिछक J.P Sanders को मौत के घाट उतार दिया।।

इसके बाद इन्होंने साथी क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिल कर के अलीपुर रोड स्थित ब्रिटिश सरकार की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेजी हुकूमत को जगाने के लिए और उनकी दमनकारी नीति के खिलाफत करने के लिए बम फोड़ा और पर्चे भी उड़ाए,, इसके बाद ये वह से भागे नहीं और अपनी गिरफ्तारी भी दी।।।

इसके बाद लौहार षड़यंत्र में सरदार भगत सिंह को इनके दो अन्य साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फ़ासी की सजा सुनाई गई और इनको फ़ासी दे दी गयी।।।

सरदार भगत सिंह को पूर्ण विश्वास था के इनकी सहादत से भारतीय जनता स्वतंत्रता को ले के और जागरूक तथा उग्र हो जायेगी लेकिन जब तक वो जीवित है तब तक ऐसा नहीं होगा और इसी विश्वास  के कारण इन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा मौत की सज्जा सुनाये जाने के बाद भी माफीनामा नहीं लिखा और 23 मार्च को इन्हें और इनके अन्य दोनों साथियों को फ़ासी पर लटका दिया गया।।।

अपने मौत से पहले इन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को एक पत्र भी लिखा और हुकूमत से ये मांग की “उन्हे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में भारतीयों के युद्ध का प्रतिक समझा जाये और उन्हें फ़ासी पर लटकाने के बजाये गोली से उड़ा दिया जाये पर हुकूमत ने उनकी ये मांग खारिज कर दी और उन्हें फ़ासी पर लटका दिया गया।।।

 

जैसा इन्होंने सोचा था ठीक वैसा ही हुआ भी और इनकी शहादत से न सिर्फ स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली वल्कि ये युवाओं के भी सिरमौर बन गए।।।

 

पुरे भारतीय जनता के बीच ये स्वतंत्रता दीवाने के रूप में जाने लगे और इनकी सहादत के बाद इन्हें शहीद-ए-आज़म की उपाधि भी दी गयी।।

आज सारे युवा इन्हें अपना आदर्श  मानते है और इनके बताये रस्ते पर चलते है।।

“मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ है

मेरी कलम भी

मैं लिखना जो चाहूं इश्क भी तो

इंकालाब लिख जाता है।।।। “

 

सत सत नमन

कुणाल सिंह

Kunal_Singh a Counsellor by profession, Motivator and Blogger by passion. A Native of Gaya,Bihar.

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