हर दिन की तरह आज का दिन भी काफी खुशनुमा था।
ठंडक भरी सुबह में शायद आज ज्यादा ताजगी थी।
आज शनिवार था अतः हमेशा की तरह नित्यकार्यो ने निवृत हो मै मंदिर माता की दर्शन के लिए निकला।
मंदिर से पूजा-अर्चना कर मैं बाहर निकला।
आज भी अन्य दिनों की भांति भिखमंगो की अच्छी खासी भीड़ लगी थी जिनमे नैनिहालों की संख्या ज्यादा थी जो हर बार किसी श्रद्धालु के बाहर आते ही उसकी ओर उम्मीद में दौड़ पड़ते थे कि वो कुछ दान देगा।
मैंने भी अपने पॉकेट से निकाल 5 रुपया उन नैनिहालों के हाथ में रख दिया।
उन 5रुपया के बदले उन्होंने न जाने मुझे कितने करोड़ो कमाने की दुयाएँ दे दी।
थोड़ी आगे बढ़ने पर मैंने कुछ भीड़ सी देखि। कौतुहलबश देखने पर पता चला एक नैनिहाल भिखारिन जमींन पर लेटी हुई थी जिसके सर और शरीर के अन्य हिस्सों पर पट्टी लपटि हुयी थी। शायद कोई दुर्घटना की शिकार हुयी थी वो बच्ची, उसे घेरें भीड़ में कुछ पुलिसवाले, कुछ हमारे समाज के अति संबेदंशील महाशय और कुछ उस गरीब बिरादरी के ही लोग थे जो शायद वही मंदिर के आसपास भीख मांग के अपना जीवन यापन करते हो।
मुझे उसके हालत पर दया तो आयी पर मैं भी लाचार देखता रहा।
तभी से एक सवाल मेरे जेहन में लगतार हथौड़े मार रहा है क्या हमारी इस समाज में समानता का यही स्तर है, अगर वो हमसे गरीब है और ऐसे गुजारा करने और सड़कों किनारे लावारिस मौत मरने पर मजबूर है तो आखिर क्यूँ?
कहने को हमारी सरकार इन गरीबों के उत्थान के लिए अनेको अभियान चला रही है पर मुद्दा ये है कि क्या वो योजनाएं और अभियान कारगर साबित हो पा रही है?
अगर जवाब हां है तो किस हद तक और अगर जवाब ना है तो आखिर क्यों?
इनको साक्षर बनाकर मुख्यधारा से जोड़ने के लिए स्कूल चले हम अभियान,
गरीब नैनिहालों के साक्षर होने और कुपोषण से बचाने के लिए मध्याह्न भोजन अभियान, नीली गोली अभियान, घर तक भोजन पहुचाने के लिए सरकारी स्कूलों में गेहूं और चावल बितरण अभियान।
अनेको-अनेक सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं जो दावें और प्रचार-प्रसार तो गरीबों के उत्थान का करती पर स्थिति ज्यो की त्यों बनी हुई है।
पिछले 2 सालों के सरकारी बिवरण से पता चला कि कॉर्पोरेशन वाले भी इस मामले के लिए उतने ही दोषी है जितनी सरकार, उनके पास आई हुयी सहायता राशि उनके पास यो ही पड़ी रह जाती है और सारे शहर के गरीब सरकारी सहायता के उम्मीद में बैठे रह जाते है।
Also Read-खुद से खुद की जंग
सरकारी अस्पतालों में ऊपर-मध्यमवर्गीय और निम्नमध्यमवर्गीय लोगो ने कब्ज़ा जमा रखा है मुफ्त की इलाज करवाने के लिए और अगर कोई गरीब वहाँ पहुच भी जाता है तो उनके साथ अस्पताल प्रशाशन का दोहरा और सौतेला रबैया उन गरीबों की जान ले लेती है।
कहने के लिए सरकार के तरफ से गरीबों के लिए चलाये जा रहे अभियान और उनके हक़ की जानकारी दूरदर्शन और आकाशवाणी के द्वारा उन्हें दी जाती है परंतु जमीनी स्तर पर ऐसी कोई व्यबस्था नहीं है जो इन गरीबों को उनका हक दिलवा सके।
इस कड़ाके की ठण्ड में जो रैनबसेरे उन्हें उनके आश्रय के रूप में सरकार से दिए गए है वहाँ भी सारे दबंगों और स्थानीय दुकानदारों ने कब्ज़ा कर के उनके सर छुपाने की जगह भी ले ली है।
कम्बल बितरण और अलाव जलाने की लकड़ियों का गबन भी इन गरीबों को ही झेलनी पड़ती है।
तो क्या आज वो नैनिहाल जिस हालत में सड़क किनारे अपनी आखिरी साँसे गिण रहें है उनकि इस हालत के जिम्मेदार आखिर कौन है?
अगर फोर्ब्स की शोध को माना जाये तो दुनिया के सबसे ऊपर के 100 अरबपत्तियों में 29 अपने इसी भारत देश के है जिनकी देश की ये स्थति है और दूसरी तरफ उसी फोर्ब्स के शोध के अनुसार हमारा देश 7वा सबसे गरीब और अति-पिछड़ा देश है।
क्या ये आकड़ें काफी है हमारी विकाशशीलता को बयां करने के लिए? क्या ये काफी है हमारी गौरवशाली अतीत के लिए या फिर हमारे आने वाले अंधकारमय भविष्य के लिए?
मेरा सवाल आपसे बस यही है इन सबके लिए जिम्मेदार आखिर कौन है?
हमारी सरकार? वो गरीब खुद? या फिर आप और मैं?
जो सारी बातें जानते हुए भी चुप है और जीवन को यथास्थिति जीते जा रहे है।
आखिर कब तक ?
और
आखिर कौन?
बहुत खूब मेरे भाई।समाज की इस बुराई को सबसे अवगत कराना जरूरी है।मुझे बहुत गर्व है की आप ऐसे सामाजिक मुद्दे उठाते हैं।
बहुत बहुत धन्यबाद
शर्मनाक। आधुनिक विकास पर जोरदार तमांचा है ऐसी हकीकत।
पर कही न कही इस हकीकत के जिम्मेदार आप और हम जैसे गैरजिम्मेदार नागरिक भी है