अगर हम थोरी देर के लिए चुनावी सरगर्मी, खेल जगत और फिल्म जगत की रंगीन बातों से बाहर निकले तो हमारे पास बात करने के लिय एक बहुत ही अच्छी और सुदृढ़ हस्ती के बारे में बात कर सकते हैं। जी हाँ मै अपने देश के किसानो के बारे में बात कर रहा हूँ। अपने देश के विकाश में एक अलग पहचान, एक अलग योगदान देता आ रहा हैं। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से इनके अत्म्हातायें की खबरे हमारे पेपर के सुर्खियाँ बन रही हैं। लेकिन, न हमारे सरकार, न हम, और न अख़बारों में सुर्खियाँ बनाने वाले ये सोच रहे हैं की आखिर क्योँ और कब तक किसान अताम्हात्यां करतें रहेंगे, आखिर कब तक इनकी जिंदगियां सिआसी फायदों के लिए कुर्बान होते रहेगी। हर साल हमारे देश में किसानों की अताम्हात्ययों की संखायाँ में लगातार बढती जा रही हैं। इन सब के पीछे कुछ प्राकर्तिक आपदाएं की मार हैं और बाकि कुछ हमारी सरकार की। आजादी के बाद कृषि छेत्र, नेशनल जीडीपी में तक़रीबन 55 फिश्दी की भागीदारी निभाते थी, लेकिन आज के समय में जहा कृषकों की संख्या में वृद्धि हुई है वही जीडीपी में इसकी भागीदारी 14 से 15 फीसदी तक ही सिमित हैं। इन सब बातों को जानने के बावोजुद हमारी सरकार का ध्यान इनकी तरफ नही जा रहा हैं। आखिर कब तक हम किसानों पे ध्यान नहीं देंगें।
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अभी –अभी हमारी सरकार जो दलहन दुसरे देश से खरीद रही हैं, अगर वे अपने देश के किसानों से खरीदें तो किसानों को भी फायदा होगा और हमारी सरकारों को भी, लेकिन इन सब बातों को छोरकर हमारी सरकार दुसरे देश से खरीदारी कर रही हैं।
पिछले साल के किसानों की आत्महत्या पे धयान दे तो एक ही बात सभी के बिच खाश हैं, बात ये हैं की जिन किसानों ने अभी तक आत्महत्या किये वे सभी बैंक से कर्ज ले रखे थे। खेतो से आने वाले फायदों को धयान में रख के वो बैंकों से क़र्ज़ लेते हैं, लेकिन जब फसल बर्बाद हो जाता हैं या उस फसल का सही रेट नही लगता हैं और वो रखे रखे ख़राब हो जाता हैं, तो क़र्ज़ के बोझ तले दबे चले जाते हैं, इन सभी बातों से परेशान होकर वे आत्महत्या का राश्ता चयन करते हैं।
दूसरी बात यह भी देखने को मिलता हैं, की वैसे किसान अधिक आत्महत्या कर रहे हैं, जिनहोंने साहूकार से नहीं बैंक से क़र्ज़ ले रखा हैं। इससे ये भी बात सामने आती ह की साहूकार उनसे जो व्याज दर लेते हैं, उनसे अधिक बैंक उनसे लते हैं, जो हमारे सरकार के सामने हैं। इन सभी बातों को जानते हुए भी सरकार,आप, और हम खामोश हैं। इन सब बातों से किसी को कोई फर्क नही परता हैं। आज कल सभी को केवल अपने बारे में सोचने के लिए भी समय की कमी हैं। हमें इस नौकरी के लिए इतने % छुट चाहिए इस बात पे सभी का नजर रहता हैं।
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अगर हम और आप इन बातों को थोरी देर के लिए भूल कर हम सभी को किसानों के लिए सोचना चाहिए। आखिर वे कब तक आत्महत्या करते रहेंगे। हम सभी को एकजुट होकर, मिलकर अपने सरकार से ये बात पूछना चाहिए की आखिर क्यों और कब तक।