☆☆☆☆गजल☆☆☆
ग़म को दिल में बसा लिया हमने।
ग़म को अपना बना लिया हमने।।
जब दियों को बुझाने वो निकले।
खुद को सूरज बना लिया हमने।।
बेच कर कह रहा है वो ईमां।
देखो पैसा कमा लिया हमने।।
चाँद, तारों की अन्जुमन में था।
उसको छत पर बुला लिया हमने।।
कोई आया नहीं मनाने जब।
खुद को खुद ही मना लिया हमने।।
तेरे झंडे को फैंक कर जालिम।
अपना परचम उठा लिया हमने।।
जिस बुलंदी पे तेरा कब्जा था।
उसको अपना बना लिया हमने।।
क्या निकाले ‘आतिफ’ उसे दिल से।
जिसको दिल में बसा लिया हमने।।