अभी के समय में जब भी कोई कुछ करने की सोचे तो सबसे पहले वो अपनी खूबिय भुला कर ऐसे महाविदालय की खोज करता है जिसके सहारे वो उस क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल करे। उदहारण के तौर पर हम मने की किसी विद्यर्थी को अगर अभियंत्रण के क्षेत्र में अगर कुछ करना है तो वो सबसे पहले इन्टरनेट पर सबसे अच्छे महाविदयालय की खोज करता हैं। मैं मानता हूँ की किसी भी अच्छे मुकाम पर पहुचने के लिए अच्छे और गुनी लोगो की सोहबत होनी जरुरी हैं, और सोहबत सिर्फ अच्छे महाविदालय में उपलब्ध होगी| पर ये इतना भी जरुरी नहीं की अगर आप की इन महाविदयालयों अपने आप को नामांकित करवाने में असफल रहे तो आप अपने आप को असफल माने और अपनी सवाभिमान खो दे,और ये मानाने लगे की अब वो कुछ नहीं कर सकता।
अपने आप को खुद की नजर की निक्कमा समझने लगता हैं।
प्रतिभा महाविदालयों की मोहताज नहीं होती बल्कि महाविद्यालय प्रतिभा के मोहताज होते हैं। मानते हैं, इंसान गलतियों का पुतला हैं और किन्ही गलतियों से वो अपने आप को सफल बनाने में असफल रहा हो,लेकिन ऐसा नहीं हैं की वो अब कुछ नहीं कर सकता।
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बहुत लोग सिर्फ हमरी शिक्षा प्रणाली के कारण भी असफल हो जाते हैं। अगर किसी को खोज में रूचि है तो ऐसा बिलकुल नहीं की उसका याददास्त अच्छा हो और वो किसी प्रतिय्योगिता परीक्षा में सफल हो ही जाये।
फिर भी प्रतिभावान लोगो को अपनी प्रतिभा पर भरोसा करनी चाहिए न की चंद उन महाविदयालयों पर| ऐसे बहुत सारे उदहारण हमारे सामने मैजूद हैं। सचिन तेंदुलकर १०वी में असफल रहे थे। एपीजे अब्दुल कलाम को हम उनके प्रतिभा के कारण पहचानते हैं न की उनकी महाविदयालय के कारण|प्रतिभा ही किसी महाविद्लाय को महान बनती है।
मेरी आप सब विद्यार्थियों से एक सुझाव हैं की अच्छी महाविदयालय खोजने की जगह अपनी अन्दर की प्रतिभा को खोजे और उसको निखारने की कोशिस करे।