मैं, मेरा, मुझे…. आपने भी कई बच्चों को ऐसी भाषा में बात करते हुए सुना होगा। वे न तो अपने खिलौने ओर किसी के साथ बांटना चाहते हैं और न ही कोई और चीज। घर में कोई रिस्तेदार या सगे सम्बन्धी आते हैं तो बच्चे अपने कमरे में ही रहना पसंद करते हैं। किसी पारिवारिक सम्मेलनों में जाने से ज्यादा वो गेम जोन या फिर मूवी देखने जाना ज्यादा पसंद करते हैं। कई बार देखा जाता है कि छोटे बच्चे भी रिश्तेदारों से मेल जोल नहीं रखते हैं। इस व्यवहार की माँ बाप भी अनदेखी करते हैं जबकि अपनों से दूरी बनाना बच्चों के भविष्य के लिए खतरनाक है। ऐसे में अभिभावकों के लिए आवश्यक है कि समय रहते बच्चों को रिश्तों की अहमियत समझाएं और खुद भी सचेत हो जाएं ताकि उन्हें या फिर आपको स्वयं कोई दुष्परिणाम न देखना पड़े।
अगर आप बच्चों से घुले मिले नहीं और आपके बच्चे रिश्तों से दूर भागे तो आने वाले समय में उन्हें अकेलेपन का सामना करना पड़ सकता है। यह अकेलापन कई बुरी आदतों में बदल जाता है जैसे कि वीडियो गेम या फिर सोशल मिडिया की लत। इससे भी आगे बढ़ने पर नशे की लत में भी तब्दील हो जाता है। ऐसे बच्चे लोगों पर भरोसा भी नहीं कर पाते।
वही बच्चा जो लोगों से घुलता मिलता है और रिश्तेदारों के बीच रहता है उसके अंदर व्यक्तित्व के कुछ खास गुण विकसित हो जाते हैं। जैसे लोगों का अभिवादन करना, बड़ों के सामने तर्कपूर्ण बात करना, अच्छा व्यवहार करना, दोस्त बनाने की काबिलियत, बेहतर सम्वाद कौशल, रिश्तों को निभा पाना और लोगों को साथ लेकर चलना इत्यादि।
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मिलकर सुलझाएं समस्याओं को: आमतौर पर बच्चे रिश्तों को तब तक नहीं समझते जब तक उनके अंदर भरोसा पैदा नहीं हो जाता। इसी कारण वे दूर भागते हैं। इस भरोसे को भरने के लिए शुरुआत अभिभावक को घर से ही करनी होती है। जब बच्चा माता पिता पर पूरा भरोसा और सम्मान करता है तो वह बाहर के लोगों से भी पूरी तरह जुड़ने को तैयार हो जाता है। इसका आसान सा तरीका है कि बच्चों की किसी भी समस्या को अनसुना ना किया जाए बल्कि उसका साथ देकर उसका समाधान किया जाए। जैसे अगर बच्चा माँ के पास आकर पूछे कि मेरा खिलौना नहीं मिल रहा है। क्या आपको पता है? इस बात पर अक्सर जवाब होता है कि मुझे नहीं पता, अभी मुझे परेशान मत करो। पर यह बात बिलकुल गलत है। यहां पर माता को सांत्वना देते हुए खिलौने को ढूंढने में बच्चे की मदद करनी चाहिए।
प्रेरणा आएगी काम: घर से बाहर जब भी जाएँ बच्चे को भी साथ ले जाएं। इसी से उसकी आदत में घुलना मिलना आ जायेगा। यदि कोई छोटा बच्चा है तो उसे उसकी किसी पसंद की चीज का लालच देकर भी प्रेरित कर सकते हैं। पर ध्यान रखें कि लालच हर बार नहीं देना चाहिए।
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सकारात्मक माहौल बनाएं: बेहतर परवरिश के लिये सकारात्मक माहौल भी जरुरी है। सकारात्मक यानी क़ि आपकी बातों में किसी प्रकार की नकारात्मकता न झलके। घर में अक्सर माता पिता परिवार के लोगों की बुराई करते हैं। ऐसा करना गलत है। ये बातें जब बच्चे सुनते हैं तो वे भी बाहरी लोगों के प्रति नकारात्मक छवि बनाते हैं।