आज अगर मुझे अकालमृत्यु घेर ले और मुझे अपनी जान गवानी पड़े तो कम-से-कम मेरे परिवार वालो को सवा करोड़ रुपया तो जीवन बीमा के तौर पे निन्सदेह मिलेंगे, जिसमे करोड़ रूपये का अकेला ऑनलाइन बीमा शामिल है, जिसकी प्रीमियम लगभग 7 हजार रूपये सालाना जाती है, और बीस-पच्चीस लाख एडिशनल है, जिसमें एम्प्लॉयर का मेजर स्टेक है साथ ही कई और सोर्स है….खैर ये हमारा मुद्दा नहीं है कि मैं कितना बड़ा अथवा कितना छोटा आदमी हूँ और मेरे मरने पर परिवार को क्या मिलने वाला है, दरसल मेरा सवाल….
सेना के शहीद होने पे मिलने वाले मुआवजा पे हो रहे अंतरराजीय अंतर और राजनीति पर है…माना कि अलग-अलग राज्यो के अलग-अलग धन प्रचुरता के मुताबिक मुआवजा तय किये जाते है, किन्तु ये सत्य है कि आज कल जीतने मुआवजे शहीदों के परिजनों को दिए जा रहे है, उतने पैसे से परिजनों को पूरा जीवन का गुजर -बसर करना नामुमकिन है।
बढ़ती महंगाई और बदलते आधुनिक परिवेश में सामंजस्य बैठाने के लिए इनकम ग्रोथ रेशियो इंफ्लेशन रेशियो से टाइट होना आवश्यक मांगता है ऐसी हालत में राज्य सरकार शहीदों के शहादत की कीमत मोल-भाव करते हुए 5 लाख, 11 लाख लगाती रहती है….एक तो परिजनों पे दुखो का पहाड़ गिर चूका , की उनका लाल उनसे सदा के लिए जुदा हो चूका है और रही सही कसर सरकार मुआवजा के तौर पे मजाक के रूप में देती है।
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सेना की नौकरी में मिलने वाले विशेष सुविधा एक बहुत बड़ी वजह है, जिससे नौजवान सेना की तरफ आकर्षित होते है, किन्तु इन दिनों मुआवजे रूपी मजाक ने कई सैनिको के दिल को झखोर दिया है, मुआवजे में मिलने वाली अपर्याप्त राशि और मुआवजे के अधिप्राप्ति के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर ने ज्यादा निराश किया है।
सरकार और संसद सेना की नौकरी में आकर्षण बनाये रखने लिए कोई कारगर कदम लम्बे समय से नहीं उठाये है, किन्तु अब वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार शीघ्र ठोस निर्णय ले…..कम से कम, शहीदों को अधिक मुआवजा देने के लिए बीमा कम्पनियो का सहारा ले, सैनिको के CTC में 6-7 हजार रूपये अधिक जोर के बीमा कम्पनियो को दिलवाते हुए अनिवार्य बीमा के तौर पे 1 करोड़ रूपये निश्चित करे।
ऐसी हालत में शहीदों के परिजनों को एक मामूली भेंट 1 करोड़ तो होंगे ही जिससे शायद उनके जीवन स्तर में ज्यादा बदलाव नहीं होंगे, हालांकि एक करोड़ रूपये किसी सैनिक की कीमत कदापि नहीं हो सकते क्योकि वे अनमोल होते है।