किस बात को कितना तवज्जो देने की जरूरत है, बच्चों को इसकी समझ नहीं होती। किशोरावस्था में कदम रखते ही उनके जीवन में एकसाथ कई घटनाएं घटने लगती हैं। स्कूल से कॉलेज और करियर, दोस्त आदि से होते हुए जीवन कई बार बदलता है। कब कोनसी बात मन में तनाव के बीज बो दे कहा नहीं जा सकता। यह बात दिमाग में घर कर जाए उससे पहले उसे पहचान लेना बहुत जरूरी होता है। आर्थिक हालात या फिर शक्ल सूरत के अलावा कब फ़ेसबुक के लाइक्स तनाव का कारण बन जाएं यह कहा नहीं जा सकता।
इन दिनों तनाव के बारे में कई किशोर मनोविज्ञानिको के पास सलाह लेने जा रहे हैं। किसी को अपने रिश्ते नातों को लेकर दिक्कत है तो कोई महंगी चीजें न खरीद पाने से अपने आप को तनाव ग्रस्त समझ रहा है। आईये जानते हैं इस समस्या के बारे में।
जरूरत से ज्यादा उम्मीद:
जीवन की नयी रफ्तार तनाव की जड़ साबित हो रही है। हमेशा हर जगह अव्वल रहने की चाहत, दूसरों से तुलना करना, खुद पर सदा अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, वक्त के साथ कदमताल न कर पाना भी इसी रफ्तार की उपज है। नम्बर कम आने पर साथियों के ताने तनाव का कारण बन रहें हैं।
परवरिश की कमियां:
माँ बाप बच्चों की हर मांग को झट से पूरी कर देते हैं। कई बार तो मांगने से पहले ही चीजें दे दी जाती है। ऐसे में कुछ महंगी चीजों की जिद्द को भी वे सामान्य समझने लगते हैं। अगर आपने इसे देने में जरा भी देर कर दी, तो मानकर चलिये बच्चे इसे अपने दिल पर ले लेंगे और फिर उग जाएगा तनाव का बीज।
अनुशाशन सिखाएं:
खुद के छोटे छोटे काम खुद करने की आदत बचपन में ही डाल देनी चाहिए। पढ़ाई लिखाई के साथ साथ खान पान और स्वास्थ्य को लेकर भी अनुशासन बरतने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके लिए जरूरी यह बात हो जाती है कि आप खुद भी अनुशासित रहें। परिवार के साथ समय बिताते समय या फिर खाना खाते समय मोबाइल या टीवी से दुरी बनाना सिखाएं और खुद भी ऐसा ही करें।
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जीने का तरीका सिखाएं:
हर बच्चा अपने आप में बिलकुल अलग होता है। जीवन के ढंग सीखाना हर अभिभावक की अपनी जिम्मेदारी होती है। बच्चे को सामाजिकता सिखाएं। छोटे भाई बहनों अथवा मित्रों की प्रशंसा करना सिखाएं। अभिभावकों का भी बच्चों से संवाद कायम रखना जरुरी है।
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