चुनोतियों का सामना हम सब करते हैं। सभी के जीवन में चुनोतियों से झूझने के पल आते हैं। लेकिन कभी कभी चुनोतियाँ इतनी गहरा जाती हैं कि विपदा की शक्ल ले लेती हैं। विपदा के उन क्षणों में हमें इसका एहसास नहीं होता। पर सच तो यह है कि विपदा के बाद हमारी जिंदगी कैसी होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि विपदा के समय हमने क्या फैसले किये, निर्भर करता है इस बात पर कि हम विपदा को कड़ी आजमाइश मानते हैं या फिर इसे एक धक्के की तरह लेते हैं। इस फर्क को समझने और सही विकल्प चुनने में मदद करता है हमारा विवेक। उस समय हम दो आधारों पर फैसला लेते हैं- पहला अपने मिजाज के मुताबिक और दूसरा एक त्वरित फैसला यानि जो उस समय हमारे दिमाग में आता है कि क्या किया जाए और हम उसे कर देते हैं।
अपनी गलती को छुपाते हुए या जो हुआ है उसका दोष दुसरो पर मढ़ते हुए बीच निकलने की कोशिश करने वले आपको बहुत मिल जाएंगे। होना यह चाहिए कि ऐसे तीन सवालों के जवाब ढूंढे जाएँ जो विपदा को आजमाइश बनाकर अवसर का रूप दे दें। आइये जानते हैं क्या हैं ये तीन सवाल।
यह विपदा कैसी है? मैं इसको कैसे सुलझाउँ या इसकी उलझन को बर्दाश्त करूँ या इससे दूरी बना लूँ?
इसका जवाब ढूंढने में किसी की मदद लेना चाहें तो ले लें। कुछ लोग ऐसा करते हैं कि एक दिन हल ढूंढा, दुसरे दिन लगा कि क्यों न स्थिति को सह ही लें। और तीसरे दिन विपदा से मुहँ मोड़कर सोचा की चलो मैंने तो कोशिश की पर कोई हल ही नहीं निकला। विपदा से दूरी बना लेने का ख्याल उन पलों में सामने आता है जब विपदा के सामने खड़े रहना घातक लग रहा हो। ऐसे समय में सहनसीलता काम आती है।
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क्या कोई इस विपदा से निपटने में मेरी मदद करेगा?
कुछ लोग आतमगलानी या फिर सदमे में इस कदर घिर जाते हैं कि अपनी तरफ आने के सारे दरवाजे बंद कर लेते हैं। आपको ऐसे इंसान की तलाश करनी होगी जिसने संकट के समय में खड़ा होकर रास्ता बनाया होगा। यह खोज ही इस सवाल का हल होगी।
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विपदा का कारण कहीं मेरे भीतर ही तो नहीं?
जिसने इस सवाल को सामने रख लिया और हल ढूंढने की कोशिश की, उसके लिए विपदा भी एक अवसर बन जायेगी। स्वाआकलन करना सरल नहीं है पर जो जवाब भीतर से मिलेगा वो लाजवाब होगा।