उसने सुधा से कहा,’क्या सुधा तुम भी काम की चीजें कचरे में फेंक देती हो’। छूट्टी के दिन सुधा ने घर की सफाई की थी। राहुल ने देखा कचरे के डिब्बे में कांच की बोतलें,पेन के ढेर सारे खाली खोखे, टूटे फूटे प्लास्टिक के डिब्बे और भी कई प्लास्टिक और लोहे की चीजें पड़ी थी। राहुल उन्हें उठाते हुए बोला,’इन्हें कचरे में फेंकने के बजाय किसी कबाड़ वाले को बेचेंगे। अच्छे खासे पैसे मिल जायेंगे।’ सुधा उसकी तरफ देखकर बोली,’बेचने वाला समान तो अलग रखा है पर ये तो किसी काम के नहीं थे इसलिए मैंने फेंक दिया’।
‘अरे चिंता मत करो यह भी बिक जायेगा।’, राहुल ने सुधा को जवाब देते हुए कहा। कचरे में से ये सब चीजें निकाल कर राहुल कचरा फेंकने के लिए चल दिया। अक्सर यह काम सुधा करती थी। पर आज घर आ रहे मेहमानों के लिए खाना बनाने में व्यस्त थी तो इसलिए उसने राहुल को यह काम सौंपा। उसे क्या पता था कि कचरा फेंकने से पहले वह उसे क्रॉस चैक करेगा। सुधा रुआंसी सी हो गयी।
राहुल सड़क पार कर कूड़ेदान में कचरे की थैली जैसे ही पलटने लगा उसका ध्यान वहां कचरा बीनने वाले बच्चों की बातों पर गया।
‘ये जो 34 नम्बर वाली आंटी है न इनके यहां के कचरे में बहुत सी बेचने लायक चीजें मिल जाती हैं। जिस दिन इनके यहाँ का कचरा टटोलता हूँ, कुछ न कुछ तो मिल ही जाता है और उस दिन पेट भर खाना खाता हुँ।’
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उनकी बातें सुनकर राहुल तेजी से घर की तरफ मुड़ा और अलग किये टूटे फूटे समान की थैली उठाई। उसे ऐसा करते देख सुधा ने उसकी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, तो राहुल मुस्कुराते हुए बोला,’जा रहा हूँ तुम्हारी कचरे वाली चैरिटी पूरी करने’ यह कहकर राहुल ने सड़क पार की और वह थैली कचरे के डिब्बे में उलट दी।