ग़ज़ल लिख रहा हूँ दुआ कर रहा हूँ !!
बहुत दर्द में हूँ ……दवा कर रहा हूँ !!
मेरे ज़ख्म फिर सूखने लग गए थे,
तुझे याद कर के नया कर रहा हूँ !!
मैं खुद क़ैद हूँ ज़िन्दगी की क़फ़स में,
परिंदों को लेकिन रिहा कर रहा हूँ !!
मैं फिर से उसे इश्क़ करने लगा हूँ,
मैं फिर से उसे बेवफ़ा कर रहा हूँ !!
लगी घर में है आग बुझती नहीं क्यूँ,
मैं कब से मुसलसल हवा कर रहा हूँ !!
तू पत्थर है फिर से यही होगा साबित,
तुझे फिर मैं अपना ख़ुदा कर रहा हूँ !!
काश तू आ जाये यही सोचकर मैं
फिर से तुझे पाने की दुआ कर रहा हूँ !!
Must read-ख़ुदा अपने बन्दे को ऐसा हुनर दे