योगी आदित्यनाथ के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बनते ही राजनितिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चे इसी बात के थे कि क्या योगी जी अबैध कसाईखानों पर रोक लगाएंगे और प्रदेश से अबैध मांस के कारोबार पर लगाम कस पाएंगे? और योगी जी ने सर्वप्रथम सबकी उम्मीदों पर खरा उतरते हुए सारे अबैध कसाईखानों पर ताला लगवा दिया और पूरे मुद्दे पर बड़े ही बेबाकी से अपनी राय रखी।
ये मुद्दा सिर्फ उत्तरप्रदेश ही नही अनबरत पुरे राष्ट्र के लिए सिरदर्द बन के बैठा हुआ है।
हिन्दू समुदायों और संगठनों का समय समय पर बिरोध और आक्रोश भी खुल कर सामने आता रहा है। इस से पहले 2014 के लोकसभा चुंनावों में गौहत्या और गौरक्षा के मुद्दे ने राजनितिक गलियारों में सियाशी हलचल मचाया था और बर्तमान में पुनः ये फिर से ज्वलंत मुद्दा बन के उभर रहा है। हम बाते करते है अपने बिहार की, जहां आपको गाये आज भी हर गल्ली-गल्ली, हर चौराहे, हर मुह्हले में सड़कों के बीचोंबींच, मंदिरों के किनारे, कचड़ों के बीच, नालो के अंदर, खुले आम घूमते मिल जायेंगे।।
इनका यु खुले आम बिचरना कभी कभी भीषण सड़क हादसों का कारण भी बन जाता है, और जान-माल की हानि में बदल जाता है।
कहने को तो बिहार नगर निगम हमेशा दावा करता रहा है कि खुले आम विचरने वाले जानवरों की धर-पकड़ जारी है तथा उनके खान-पान की व्यवस्था कर दी जाती है परंतु तथ्य इस से सदैव कोसों दूर होता है। ऐसा कोई भी दिन नहीं होता जब आप सड़को पर निकले और आपको ऐसा दृश्य न देखने को मिला हो, या ऐसा कोई दिन नहीं होता जब ऐसी खबरें न आती हो कि इन जानवरों के कारण कोई दुर्घटना न घटि हो अथवा कोई घायल न हुआ हो, एकाएक सड़को पर इनकी भाग-दौड़, किसी के पीछे पागलो की तरह इनका भागना, एकाएक से जनता को भयभीत कर जाता है। अगर आज ये जानवर खुले में घूमने को मजबूर है तो कही न कही इनकी इस दुर्दशा के पीछे हम ही जिम्मेदार होते है।
आज इन लाचार तथा निरीह गायों की इस हालत के पीछे हमारा अमानवीय व्यवहार होता है, जब तक गाये दुग्ध-उत्पादन में सक्षम होती है तब तक हम उन्हें माँ का दर्जा देते हुए उनका लालन-पालन करते है परंतु जैसे ही वे बूढ़े तथा लाचार हो जाते है और दुग्ध-उत्पादन में अक्षम हम उन्हें अपने गोशालाओं से दूर खदेड़ देते है तथा उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते है।
तथा वे निरीह जानवर अपने पेट भरने के लिए इंसानो द्वारा फेकें गये कूड़े-कचड़ों में अपना भोजन ढूंढने लगते है तथा भोजन के रूप में दूषित भोजन, प्लास्टिक, शीशा इत्यादि का सेवन कर के असमय ही काल के मुँह में समा जाते है।कुछ बूढ़े तथा लाचार गाये को हम हिंदुयों द्वारा चंद रुपयों के लिए कसाईयों के हाथों बेच दिया जाता है, जो उन्हें बड़े ही बेरहमी और निर्दायिता से मौत के घाट उतार देते है। जब तक गायें दुग्ध-उत्पादन में योगदान देती है तब तक हम उन्हें बड़े लाड-प्यार से पालते है तथा उनका दाना-पानी को अपना फ़र्ज़ मानते है परंतु उनके बूढ़े तथा लाचार होते ही हम अपने फ़र्ज़ को भूल उन्हें उनके हाल पर अपने गोशालाओं से दूर भगा देते है और वो खुलेआम सड़कों पर विचरते रहते है जिसके फलस्वरूप अनेको यातायात-दुर्घटनाओं का कारण बनते है तथा जान-माल की काफी हानि पहुचती है।
कुछ गायें गोशालाओं में ही अपने प्राण त्याग देती है जिन्हें या तो डोम लोगो को बेच दिया जाता है जो उनका उपयोग चमड़े के कारोबार में करते है तथा कुछ मृत गायों को खुले मैदानों में, नालों में, रेल की पटरियों के किनारे फेंक दिए जाते है जो मानव-निवास के लिए असहनीय सड़ांध के साथ साथ अनेक बीमारियों तथा महामारियों का कारण बनते है।
देखा जाए तो हम हिन्दू समुदाय जिस गायों की आज़ादी की लड़ाई लड़ते और संघर्ष का ढोंग करते है, कही न कही उनके इस दुर्गति के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। आज अगर हम दो-चार पैसों के लिए कसाईखानों में कसाईयों के हाथ न सौपे तो क्या उन्हें इतनी निर्दायिता और बर्बरता से मौत के घाट उतारा जा सकता है??
अगर हम उन्हें बूढ़े तथा लाचार होने पर अपने गोशालाओं से नहीं खदेड़े तो वे लाचार हो यहाँ वहाँ नहीं भटकने पर मजबूर होते और असमय मौत के मुँह में नहीं समाते। आज हम क्यों न अपने सामाजिक जिम्मेदारियों से सीखते हुए प्रण ले और एक सामाजिक कदम उठाये जो सही मायनों में इन बेजुबान और निरीह जानवरों के पुर्नउत्तथान में सहायक बने।
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कुछ भी हो जाए अब समय आ चुका है कि हम प्रण ले और ये निश्चित करे के कुछ भी हो जाये हम इन लाचार और बेजुबान बूढ़े गायों को चंद रुपयों के लालच में कसाईयों के हाथ नहीं बेचेंगे, उन्हें दुग्ध-उत्पादन के काबिल नहीं रहने पर गोशालाओं से नहीं भगाएंगे, उनकी मौत के बाद उन्हें यहाँ-वहाँ फेक कर उनके माँ होने के दर्जे को खराब नहीं करेंगे तथा उन्हें भी इंसान-स्वरुप अंतिम संस्कार के रीती-रिवाजों के साथ आखिरी बिदाई देंगे।
इसके लिए मारा और आपका साथ आना अतिआवश्यक है तथा और भी कड़े कदम उठाने होंगे तथा जगह जगह गोशालाओं का निर्माण करवाना होगा जिसके लिए हमे यथासंभव आपस में मिल-जुल कर चंदा एकत्रित करना होगा और इंसानी माता के बाद इस दूसरी माँ को उसके आखिरी वक़्त में वही स्नेह और हक़ के साथ इस जहां से बिदा करना होगा।
जिस स्नेह तथा हक़ की वो सदैव हकदार थी।
बहुत खूब सराहनीय लेख !! धन्यवाद