तुम हो न साथ मेरे!!!

आज, मेरी साप्ताहिक छुट्टी थी। मैंने काफी कुछ सोच रखा था आज के लिए, काफी दोस्तों से मिलना था, कुछ अधूरे काम भी निपटाने थे।

इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में यही एक दिन मेरा होता जिसका मैं अपनी मर्जी का मालिक होता था। काफी देर से जागने के बाद मैंने घडी पर निगाह डाली तो चौक सा गया घडी करीब 11 बजा रही थी।

मैं जल्दी से भाग बाथरूम जाने ही वाला था की अचानक से कॉल-बेल बजी- मैं भी अचंभित था कि आज और अभी कौन होगा।

मैंने दरबाजा खोला सामने डाकिया खड़ा था।

मैंने पूछा:- हां कहिये,

डाकिया:- सर आपका डाक है,

मैं सोच में पड़ गया कि आज के ज़माने में डाक से तार किसने भेजा होगा?

कोई अपना होता तो कम से कम कॉल या मैसेज जरूर करता।

मेरे मन में एक अजीब सी उलझन के संग सिहरन की लहर दौड़ सी गयी।

मैंने डाकिये से लिफाफा लिया और कौतूहल से उसी के सामने उसे खोल दिया और अंदर का नाम पढ़ के मैं चौंक सा गया और अपने ही ख्यालों में खोते चला गया।

कॉलेज में आखिरी सेमेस्टर की पढ़ाई  चल रही थी,  मैं क्लास में अंदर जाने ही वाला था कि मेरे फ़ोन में मैसेज आने की बीप-बीप हुयी। मैंने फोन निकाला स्क्रीन पर मैसेज आया “बाबु मैंने आज आपके लिए बेसन की सब्जी और आलू पराठें बनाये है आप आ जाना” 

मैंने फोन अपने पैकेट में डाला और मैं कुछ ही समय में उसके दरबाजे पर खड़ा उसका रिंग-बेल बजा रहा था।

दरबाजा खुला, खुले-भींगे बालों में और भी खूबसूरत लग रही थी, शायद अभी अभी नहा के निकली थी वो, मैं एकटक उसे और उसकी खूबसूरती को निहारता ही रह गया था।

“अरे बाबु, अंदर तो आओ, अंदर नहीं आना क्या?? बाहर से ही देखते रहोगे??

मैं झेंप सा गया उसके इस सवाल से।

 

वो शायद समझ गयी थी मेरे शर्म को और मुस्कुराते हुए मुझे अंदर आने का इशारा किया उसने।

मैं उसके पीछे पीछे उसके घर के अंदर चला गया।

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फिर हम दोनों ने साथ में बेसन की सब्जी और आलू-पराठें खाये जो बिलकुल उसकी ख़ूबसूरती की तरह नायाब था, शायद वो मेरी पसंद समझती थी या उस पसंद को अपना बनाना चाहती थी।

अब मैं चलता हूं:- मैंने कहा

“बाबु, आज घर से मम्मी ने कॉल किया था, पूछ रही थी छुट्टियों में घर तो आ रही हो न! शायद शादी की बात करना चाह रही थी पर मैंने बात को टाल दिया”:- उसने कहा

मैंने खीजते हुए उसे कहा:- ” तो क्या इसी बात के लिए बुलाया था तुमने मुझे आज”

अगले ही पल बिना समय गवाये उसने बिना कुछ कहे दरवाजे बंद कर दिए अपनी पलकें उठाये बिना ही एक बार भी, फिर भी उसकी आँखों में आये आँशु मुझसे छिप नहीं पा सकी।

शायद उन आशुओं का कारण भी मैं ही था।

मुझे भी खुद पर एक पल गुस्सा आया, मैं ऐसा कैसे  पेश आ सकता हु उस से???

अगले कुछ दिन न उसने कॉल किया न मैंने, फिर कुछ दिनों के बाद उसका कॉल भी आया पर शायद मैंने जान के जवाब नहीं दिया उसके कॉल का, उसके बाद मेरे फोन पर उसके कुछ मैसेज भी आये।

“बाबु, आप हमेशा उस वक़्त क्यों दूर होते हो मुझसे जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत होती है”??

मैंने फिर से कोई जवाब नहीं दिया।

अगले महीने ही हमारी कॉलेज खत्म हो गयी और मैं अपनी जॉब के सिलसिले में देल्ही और वो अपने किसी रिश्तेदार के घर बंगलोर चली गयी।

हमारे रिस्ता तब भी बना रहा और अक्सर हमारी बातें होतें रहती थी, पर शायद मैंने उसे कभी न कॉल किया न कभी करने की कोशिश की। जब भी हमारी बातें होती थी, हर बार उसका बस एक सवाल होता था

 “बाबु, आप साथ तो हो न मेरे” 

और मैं हमेशा ही कोई जवाब दिए बिना ही कॉल रख दिया करता था, या शायद मैं कोई जवाब देना ही नहीं चाहता था उसे।

कुछ दिनों के बाद उसका कॉल आया और उसने बताया की वो होली की छुट्टियों में अपने घर जा रही है, मैंने उसे कुछ न कहा।

पुनः कुछ दिनों के बाद उसने कॉल किया और बताया कि घरवाले उसके लिए रिस्ते देख रहे है।

उसने मुझसे कहा “बाबु आप कहो तो, मैं कुछ दिन और उनको समझा के रोकती हु और अगर आप कहो तो मैं आपके लिए बात करती हूं, घरवाले मान  जायेंगे”

मैं हमेशा की तरह इस बार भी कुछ नहीं बोल सका और उसने मेरी चुप्पी से कॉल काट दिया।

हफ्ते-दो हफ्ते बाद उसका मैसेज आया “बाबु, मुझे कुछ बात करनी है आपसे”

मैंने कोई जवाब नहीं दिया

उसने फिर मैसेज किया “बाबु, आप साथ हो न”

मैंने अपनी काम की परेशानियों की सोच उस से थोड़े देर बाद बात करने की सोच उस वक़्त उसे कॉल नहीं किया और बाद में मैं कर नहीं पाया और हमेशा की तरह आज भी उसे अकेले छोड़ काम में लग गया।।

फिर न उसने कभी कोई कॉल किया, न उसका कभी कोई मैसेज आया।

न उसने कभी कोई कोशिश की, न मैंने कभी कोई कोशिश की उस से बात करने की।।।

पर ये क्या??

आज अचानक से मेरे हाथों में उसकी शादी का निमंत्रण कार्ड और वो भी डाक से,

मैं जैसे बर्फ सा जम सा गया था और अचानक अपनी यादों की नींद से जागा जब डाकिया जोर से बोला “साहब- आपका हस्ताछर” मैंने खुद को संभाला और डाकिये को विदा कर के वापस अपने पलंग पर आ निढाल हो गिर पड़ा।

पता नहीं क्यों पर आज मैंने इतने दिनों में पहली बार उसे दिल से टटोला था अपने भीतर में पर शायद वो वहां मुझे न मिल पाई या शायद वो वहां कभी थी ही नहीं।

मैंने काफी हिम्मत से और काफी देर सोचने के बाद कार्ड को खोला और काफी अच्छे से और बार बार पढ़ने लगा उसके शादी के निमंत्रण कार्ड को। अचानक से मेरी नजर कार्ड पर दिए एक नंबर पर गयी और ये उसी का था, मैंने उस पर कॉल लगाया और उसकी जानी-पहचानी सी आवाज सुनाई दी।

मैंने उसके कुछ पूछने से पहले ही उसका नाम पुकारा, उसके बाद अगले शब्द उसका था “बाबु, तुम!

इतने दिनों के बाद,

मैं कबसे तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी??

आज भी मैं कुछ नहीं कहा या शायद मैं कह नहीं पाया या आज मैंने अपनी भराएँ हुए गले से उसे कुछ कह के अपने हालात बयाँ नहीं करना चाह रहा था।।।

 

मैंने आज फिर से कॉल काट दिया।

 

आज पहली बार मैंने उस से खुद के लिए “तुम” सुना था, आज पहली बार उसने मुझे आप से तुम पुकारा था।।।

मैंने महसूस किया आज शायद पहली बार मेरी आँखों में आशुं थे वो भी उसके लिए जिसकी हर आशुओं की वजह ही शायद मैं रहा था हमेशा!

इसी अजीब सी उधेड़-बुन में मैंने ज्योही कार्ड को वापस लिफाफे में डाला अंदर से एक छोटी सी पर्ची गिरी।।

मैंने उसे उठाया और उसे जल्दी से खोला तो उसमें लिखा था

“आप साथ तो हो न??”

पर आज इन शब्दों में “बाबु” नहीं था कही भी।

शायद

वो अपनापन, भरोषा और प्यार खो दिया था मैंने।

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कुणाल सिंह

Kunal_Singh a Counsellor by profession, Motivator and Blogger by passion. A Native of Gaya,Bihar.

This Post Has 0 Comments

  1. Shankar sharan

    Awesome written bro…..ye ek khusbsurat ehsaas h…..jisko aapne shabd dekar isko maayne diye

    1. Kunal Singh

      बहुत बहुत शुक्रिया भाई साहब

    1. Kunal Singh

      धन्यबाद

  2. Divya

    Bahut acha… Bahut sundar

    1. Kunal Singh

      बहुत बहुत शुक्रिया

    2. Kunal Singh

      बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा आपका

  3. Anonymous

    Bhut aacha likhe ho felling ke saat

    1. Kunal Singh

      बहुत बहुत शुक्रिया भाई साहब

    2. Kunal Singh

      शुक्रिया जी

  4. Arif Hasan

    Bahut achhe ye bahuton ke jindagi ke hakikat ko bayan karta h

    1. Kunal Singh

      बिलकुल सही कहे भाई तुम
      मुझसे भी मेल खाती है

  5. Anand kumar jha

    Purani yaade taza ho gyi kunal yaar …..

    1. Kunal Singh

      बिलकुल सही कहा भाई तुमने

  6. pritam pratik

    aap ki soch se ek humanity ki jhalak dikh rahi h kunal ji…

    1. Kunal Singh

      बहुत बहुत शुक्रिया जी

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