इधर शौहर आता है , तिरंगे की शान में
उधर माँ बेटा भेज देती है जंगे-मैदान में
इस नफरत ने कई , नस्ले बर्बाद कर दी
कहाँ लिखा है ये सब गीता-ओ-क़ुरान में
भाई जहाँ भाई की पीठ तकता रहता हो
बरकत कहाँ आयेगी फिर ऐसी दुकान में
बच्चो की जिद के आगे झुकना पड़ता है
वरना बुजुर्गों की जान रहती है मकान में
खेलती है, घिणौना खेल खुनी ,सियासते
लोग बँट जाते है हिन्दू -ओ- मुस्लमान में
माथे की इस शिकन में तीन-तीन दरारे है
इक बाप की बेबसी है चेहरे की थकान में
मुफ़लिसी के बच्चें ,यूँ ही जवान नहीं होते
मजबूरियाँ ले जाती है कोयले की खान में
शहर की इस ख़ामोशी से दहशत में हूँ मैं
कई लोग सोते है , पुरव खुले आसमान में
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