बिहार की शिक्षा प्रणाली की दुर्दशा पर “कवि अभिषेक गोस्वामी” एक संवेदनशील कविता
मत रोक मुझे
मत रोक मुझे अपनी हस्ती खोने को
अपने जन्मभूमि से दूर होने को
पल पल नीर बहाने से अच्छा हैं
रो लू जी भर सबकुछ खोने को।।
जहाँ भी जाऊंगा, हीन भावना से देखा जाऊंगा
अपने कुछ वेविचारी लोगो की सौगात भी साथ ले जाऊंगा
अब परवाह नहीं मुझे, निचा समझा जाने से
जब किये हैं हम कर्म वैसे तो, फिर क्यूँ डरु सजा पाने से।।
जिसके लिए हम पहचाने जाते, राजेंद्र की संतान कहलाते
देख रहा हूँ सारे भूखे दीमक, उस पवित्र वृक्ष को खाते
हैं परवाह नहीं जन की इनको, अपनी पेट भरने में लगे हुए हैं
चंद पैसों की खातिर बिहारी मेधा बदनाम किये हुए हैं।।
कभी होती मेधा घोटाला यहाँ, कभी प्रश्न पत्र बिक जाते हैं
कभी बिन परीक्षा हुए, नौकरी भी लग जाते हैं
आज दिख रहा मुझे, कालिदास हर लोभी बिहारी में
उसी टहनी को काट रहा, जिससे इज्जत पाई विश्व सारी में।।
पूरी समाज में फैलेगी ख्याति अब, और बड़ा धब्बा लग जायेगा
शक की नजर से तो हम पहले भी देखे जाते थे, अब गर्व से फर्जी डिग्रीधरी कहलायेंगे
घुट घुट कर जीने से अच्छा हैं, एक बार मर जायेंगे
छोड़ देंगे अपना देश, हम परदेशी बन जायेंगे।।
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देखा नहीं पहले कभी, उस काफिले को बिगडैल होते हुए
नेता हो जिसका इमानदार, ऐसे प्रणाली भ्रष्टाचारी होते हुए
अगर अर्जुन सही से अपनी शक्ति का प्रयोग करे,
तो हिम्मत नहीं किसी दुर्योधन में, जो उसका पथ रोक सके।।
निराश हूँ हताश हूँ, पर छोटी सी आशा संजोये हुए
बदलेगी सोच बदलेंगे विचार, ऐसी उमीदे लिए हुए
अपनी इच्छाओ की गुब्बारे, एकल नहीं उड़ायेंगे
बाँध कर उसे एकदूसरे से, प्रगतिशील बिहार बनायेगे।।
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रचनाकार
कवि अभिषेक गोस्वामी
बहूत खूब