ख़ता ये थी कि हमने साथ चलने की क़सम खाई

ज़मीं अपनी नहीं समझे,बता फिर आसमाँ कैसा मिला था एक मौका ये समझने का ,जहाँ कैसा ख़ता ये थी कि हमने साथ चलने की क़सम खाई सज़ा के तौर पर…

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