यूपी चुनाव में सत्ता तक पहुचने के लिए सियासी पार्टियां टोने टोटके तक का सहारा ले रही हैं। चर्चा है कि ज्योतिष की सलाह से उत्तर प्रदेश के सी एम अखिलेश यादव ने सुल्तानपुर से चुनावी रैली शुरू की। जबकि यहां चुनाव पांचवे दौर में होना है। यह भी कहा जा रहा है कि अखिलेश ने 2012 चुनाव प्रचार की शुरुआत भी सुल्तानपुर से ही की थी। इसके बाद पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सपा की सरकार बनी थी। ऐसे में वो इसे अपने लिए लक्की मान रहें हैं। जानकार कहते हैं कि पहले चरण में चुनाव पश्चिमी यूपी में हैं लेकिन ज्योतिष के दिशा शूल के नियम के मुताबिक मंगलवार को पश्चिम दिशा में शुभ काम के लिए यात्रा नहीं करते। इसी तरह यहां की कई पार्टियां भी जीत के लिए टोने टोटके अपना रहीं हैं। उत्तर प्रदेश की सियासत में ऐसे ही कुछ टोने टोटकों की खूब चर्चा हो रही है।
भाजपा: कानपुर की रैली में मोदी की लक्की कुर्सी की चर्चा।
कानपूर के भाजपा दफ्तर में एक कुर्सी रखी है। लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी इसी कुर्सी पर बैठे थे। और पार्टी सत्ता में भी आ गयी। यहां के नेता इस कुर्सी को लक्की मानते हैं। पिछले साल मोदी जब कानपुर आये थे तब इसी कुर्सी का इस्तेमाल टोटके के लिए किया गया था।
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दूसरी तरफ लखनऊ के बीजेपी दफ्तर में एक पुराना पेड़ आंधी में गिर गया। लोग खुश हुए। वहम था कि पेड़ की वजह से सामने विधानसभा नहीं दिखती इसलिए पार्टी पिछले चुनावों में पिछड़ी थी।
बसपा: माया हमेशा ऑफ व्हाइट कपड़े पहनती हैं, कभी कभी पिंक।
बसपा सुप्रीमो हमेशा ऑफ़ व्हाइट कपड़े पहनती हैं। खासतोर पर अपने जन्मदिन के मौके पर गुलाबी कपडे पहनती हैं। लोग इसे शुभ अशुभ से जोड़ते हैं। पर मायावती सफाई में कहती हैं “पिंक कलर कुछ चमकता है। मैं अपने समाज को पिंक कलर की तरह खुशहाल बनाना चाहती हूँ। उनकी जिंदगी पिंक कलर की तरह उज्जवल रहे। यह कलर खिलता रहता है। मेरा समाज मतलब जो सर्वसमाज है, वह भी खिले।”
सपा: जो नोएडा गया वो दोबारा सत्ता नहीं पाता। इसलिए टीपू नहीं गए।
जो सीएम नोएडा जाता है वह दोबारा सत्ता में नहीं आता। अखिलेश यानी टीपू नें सारे उदघाट्न लखनऊ से किये। दादरी जैसे काण्ड पर भी नहीं गए। 1989 में एन डी तिवारी गये जिनकी कुर्सी छिन गयी। 2006 में मुलायम के रहते निठारी कांड हुआ। आंदोलन भी हुआ। सरकार हिल गयी लेकिन नोएडा नहीं गये। 2011 में मायावती नोएडा गयी तो उनकी भी कुर्सी चली गयी।
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कांग्रेस: दफ्तर की जिसने भी पुताई करवाई उसी की कुर्सी चली गयी।
लखनऊ कांग्रेस दफ्तर को लेकर भी वहम है। जो भी प्रदेश अध्यक्ष दफ्तर की पुताई करवाता है, उसकी कुर्सी चली जाती है। 1992 में महावीर प्रसाद, 1995 में एनडी तिवारी, 1998 में सलमान खुर्सिद और 2012 में रीता जोशी सभी इसी तरह हटे।
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एक और वहम के कारण यहाँ लगे अशोक के पेड़ जैसे ही कुछ बड़े होते हैं उनकी छटनी कर दी जाती है। अशोक के पेड़ का बिल्डिंग से ऊँचा होना अपसगुन माना जाता है।