ख़ुदा अपने बन्दे को ऐसा हुनर दे

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ग़ज़ल:—
मुझपे करम मौला ऐसा तू कर दे।
हरिक दर झुके जो मुझे ऐसा सर दे।।

मिलाता रहूं बस दिलों से दिलों को।
मेरे दिल में ऐसा ही जज़्बा तू भर दे।।

लगाता रहूं मैं नये मील पत्थर।
ख़ुदा अपने बन्दे को ऐसा हुनर दे।।

मेरे पास आने न दे जो बुराई।
सदा नेक ऐसा मुझे राहबर दे।।

जो आग़ाज़ मेरे को अंजाम बख़्शे।
मुझे मेरे दाता तू ऐसा सफ़र दे।।

दुआ मैं करूं बस यही मेरे मौला।
सदा सज़दा करने कोअपना ही दर दे।।

मिटाता रहूं मैं सदा ही अंधेरे।
तू ऐसा नया नूर ‘अंजुम’ में भर दे।।

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